December 23, 2024

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आलू की पैदावार के माध्यम से किसानों की आय दोगुनी करने पर किसान गोष्ठी का आयोजन

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काशीपुर में आज इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर दिल्ली एवं कृषि विज्ञान केंद्र तथा पंडित गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर के द्वारा संयुक्त रूप से पोटैटो फील्ड डे के तहत किसानों के साथ एक गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें आलू की पैदावार बढ़ाने तथा आलू की पैदावार के माध्यम से किसानों की आय बढ़ाने जैसे विषय पर चर्चा की गई। गोष्टी में इंटरनेशनल को पोटैटो सेंटर (अंतर्राष्ट्रीय आलू सेंटर) दिल्ली से आई डॉक्टर पूजा पांडे एवं डॉक्टर एमएस कादीयान के साथ-साथ पंडित गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय के वाइस कुलपति ने तेजप्रताप ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की।

दरअसल इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर दिल्ली एवं कृषि विज्ञान केंद्र तथा पंडित गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर के द्वारा संयुक्त रूप से पोटैटो फील्ड डे के तहत किसानों के साथ एक गोष्ठी का आयोजन रानी रजपुरा स्थित बहुतायत में आलू की पैदावार करने वाले किसान दिलबाग सिंह के आवास पर किया गया। गोष्ठी में पहुँचे मुख्य अतिथि डॉक्टर पूजा पांडे एवं डॉक्टर एमएस कादीयान के साथ-साथ पंडित गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय के वाइस कुलपति ने डॉ. तेजप्रताप ने सबसे पहले दिलबाग सिंह के खेत में जाकर आलू की अलग-अलग प्रजातियों का निरीक्षण किया तथा आलू की प्रजातियों से संबंधित जानकारी भी कृषकों के साथ साझा की। इसके बाद आयोजित गोष्टी के माध्यम से इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर दिल्ली से आए डॉ. एमएस कादीयान ने किसानों को अंतरराष्ट्रीय आलू सेंटर के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि दक्षिणी अमेरिका के लीमा में इसका मुख्यालय है।

भारत में सन 1500 के लगभग दार्जिलिंग में सबसे पहले इसकी शाखा खोली गयीं जो कि अब वर्तमान में भारत के अधिकतर स्थानों पर स्थित हैं। गोष्ठी के दौरान आलू की हिमालनी प्रजाति को सबसे बेहतर बताया गया। वहीं इस दौरान आलू के साथ-साथ अन्य फसलों की पैदावार के माध्यम से कम समय में किसानों की आमदनी कैसे बढ़ाई जाए इस पर भी चर्चा की गई। इस दौरान मीडिया से रूबरू होते हुए इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर दिल्ली से आए एमएस कादीयान ने कहा कि उत्तराखंड के तराई तथा पर्वतीय क्षेत्रों के किसानों की आय अगले 3 साल में बदलते पर्यावरण और किसानी सिस्टम के साथ कैसे दोगुनी हो सकती है, इस पर चर्चा की जा रही है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या इस तरह के बीजों की है जोकि 70 से 80 दिन की पैदावार का हो, जिससे कि किसान आलू की खेती के बाद अन्य फसलें और सब्जी अपने खेतों में होगा सके और अपनी आमदनी को दोगुना कर सके।

किसानों को मिलने वाली वैरायटी वैसी हो जिसमें बीमारी ना लग सके। इंटरनेशनल पोटैटो सेंटर गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय पंतनगर के साथ मिलकर किसानों को अच्छी क्वालिटी का बीज दिलवाना चाहता है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश है कि यहां के किसानों की इच्छा के अनुसार यहां के लिए वैरायटी चयनित की जाएं ताकि उन वैरायटी से यहां के किसान बीज बनाकर दूसरे राज्यों में बेच सकें। उन्होंने कहा कि भारत में आलू की 60 से अधिक प्रजातियां विकसित की गई हैं। इस मौके पर कृषि विज्ञान केंद्र काशीपुर के प्रभारी डॉ जितेंद्र क्वात्रा, सह प्राध्यापक डॉक्टर प्रभाकर, डॉक्टर प्रतिभा सिंह, डॉ अनिल चंद्रा, किसान दिलबाग सिंह, रवि डोगरा, अरुण शर्मा आदि अनेक अधिकारी एवं किसान उपस्थित थे