सन्त दादू दयाल और सुखदेव-राजा जनक के प्रसंगों से समझाया कि चाहे तो परीक्षा ले लो लेकिन पूरे समर्थ गुरु करो
आत्मा को परमात्मा से मिलाने का सरल मार्ग नामदान बताने वाले, इस समय धरती पर मौजूद सतपुरुष के साक्षात अवतार, पूरे समर्थ सन्त सतगुरु, उज्जैन के पूज्य बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 14 अप्रेल 2020 को उज्जैन आश्रम में दिए संदेश में गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए बताया कि राजा जनक के पास सुखदेव जब पहुंचे उनको शंका थी कि ये पूरे हैं कि अधूरे हैं। गुरु किसको बनाया जाता है? गुरु जो जानकार हो, समझदार हो उसको। अधूरा गुरु नहीं बनाया जाता।
पानी पियो छान कर, गुरु करो जानकर
आपके दादू साहब महात्मा हुए छोटे कद के थे, चंदूले थे। चंदूले किसको कहते हैं? जिसके सर पर बाल नहीं होते। बहुत से लोग चंदूले को अच्छा नहीं समझते जैसे कोई घर से निकले और सांप या बिल्ली रास्ता काट दे तो कहते हैं अच्छा नहीं है लौट चलो। विधवा नारी अगर मिल गई रास्ते में अकेले तो कहते हैं आज नहीं चलना चाहिए। एक बार पड़ोस के गांव की तरफ जब दादू साहब जा रहे थे तो वहां दो आदमी दादू साहब के बारे में सुने थे और कहे थे कि चलेंगे, उनसे नामदान दीक्षा लेंगे, वो लोग भी आ रहे थे उधर। तब तक दादू जी दिखाई पड़ गए। उन्होंने दादू जी को रोका लेकिन सोचे कि यह अपशगुन हो गया, चंदूला मिल गया। पूछा दादू साहब का घर किधर है तो उन्होंने बता दिया इधर चले जाओ। तो दूसरे ने सोचा चंदूल मिल गया अब क्या घर खोजे, क्या मिलेगा। तो हाथ से उनके सिर पर मार दिया। दादू साहब कुछ नहीं बोले। यह पहुंचे तो देखा कि दादू साहब जी वहां नहीं थे। पूछा कहां गए तो बोले आ रहे हैं अभी। दादू साहब जब उधर से आए, इन दोनों ने किसी से पूछा कि यह कौन हैं तो बोले यही दादू साहब हैं। अब बड़ी ग्लानि हुई उनको लेकिन जब धनुष से तीर निकल जाती है तो वापस नहीं आता है। मुंह से निकली हुई बात भी वापस नहीं आती। इसी तरह की गलती कर बैठे थे। लेकिन फिर सोचा क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात। तो अब माफी मांग लेना चाहिए, क्षमा करेंगे ही या सजा दे देंगे, जो भी है। असर तो बहुत पड़ा कि देखो मैंने मारा और कुछ नहीं बोले। तो परखा इन दोनों ने कि हां ठीक है, अच्छा लगा उनको। जब उन्होंने दादू साहब जी से माफी मांगा तब उन्होंने कहा एक हंडिया भी खरीदते हैं तो ठोक बजा करके कि कहीं टूटी तो नहीं है तो तुमने ठोक बजाकर के गुरु किया, गुरु की खोज किया तो कोई हर्ज नहीं है, कोई बात नहीं है, वह बात वही खत्म हो गई, निकल गई। आप यह समझो ठोक बजाकर के गुरु किया जाता है। जो दुनिया संसार को समझ जाते हैं तो उनके समझ में तो आ जाता है और जो मौत को सामने रखते हैं वह इससे बचे रहते है।
शुकदेव को राजा जनक पर शंका हो गई कि पूरे गुरु हैं या नही तब उन्होंने शंका का किया समाधान
राजा जनक ने भी सोच लिया जब तक इसकी शंका खत्म नहीं की जाएगी तब तक इसको विश्वास नहीं होगा। और बिना विश्वाश के इसे कुछ भी बताया जाएगा तो करेगा नहीं। तब उन्होंने सिपाही को बुलाया और कहा कि इनको सुबह ले जाना और बाजार घुमाना। वहां जो रामलीला, रासलीला हो रही इनको सब दिखाओ और जो इनको पसंद आवे वही दिलवा दो फिर वापस ले आओ। लेकिन इनके हाथ पर दूध का पूरा भरा हुआ प्याला रख देना और ये जब तक घूमेंगे बराबर प्याले को रखे रहेंगे। लेकिन एक बूंद भी प्याले का दूध अगर नीचे गिर गया तू ही इनका सिर काट देना। सुबह सिपाही ने इनके हाथ में रखा दूध का प्याला और पूरा बाजार घुमा कर लाया। राजा ने पूछा बाजार देखा तो तब सुखदेव ने कहा सच पूछो तो मैंने आपका बाजार देखा ही नहीं। क्यों नहीं देखा? बोले एक नजर ऐसे देखा, उसमें गहराई में मैं नहीं जा पाया। वहां की कोई भी चीज मैंने नहीं पाया। उसमें मैं फंसा नहीं। मैं तो यही सोचता रहा कहीं हमारा हाथ हिल न जाए और दूध नीचे गिर न जाए और हमारा सिर कलम न कर दिया जाए। तो मैं बराबर इसी को देखता रहा। जो मौत को हथेली पर रखे रहते हैं वह फंसते नहीं है। रहते इस संसार में है लेकिन इसमें फंसते नहीं है।
परमात्मा और मौत सत्य है। दोनो को हमेशा याद रखो तो गुनाह नहीं होंगे
आदमी को जब निराशा होती है, जब इधर को भूलता है, अपनी मौत को याद करता है, यह सोचता है कि जो यहां पर आए, सब चले गए और हमको भी जाना पड़ेगा तब उस मालिक की तरफ लगन लगती है। रास्ता आदमी खोजता है कि उद्धार का, कल्याण का, जन्म मरण से छुटकारा का रास्ता कहां मिलेगा। तो मिल ही जाता है कोई ना कोई। और जिसको जैसी जानकारी होती है जब बताता है और लग जाता है सच्चे मन से तब उस मालिक कि दया हो जाती है।
Deepali Sharma
सम्पादक
खबर प्रवाह
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