ख़बर प्रवाह (02 अप्रैल, 2023)
देश में यूं तो अनेको शक्ति पीठ मंदिर स्थित हैं जिनका अपना अलग अलग महत्व है। ऐसा ही 51 शक्तिपीठों में एक मंदिर काशीपुर में भी स्थित है जिसकी मान्यता के चर्चे पूरे देश में है। काशीपुर का मां बाल सुंदरी देवी का मंदिर जिसे चैती मंदिर भी कहा जाता है, जहां चैत्रमास में प्रत्येक वर्ष मेला लगता है। जहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आकर माता के दर्शन करते हैं और मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना करते हैं। यह मंदिर अपने मस्जिद नुमा आकृति का कारण चर्चाओं में है।
मां बाल सुंदरी देवी के मंदिर का इतिहास मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल से भी जुड़ा हुआ है। मां बाल सुंदरी देवी का मंदिर का ऊपरी हिस्सा मस्जिदनुमा गुंबद की तरह दिखता है। इसके बारे में पूछने पर मंदिर के सहायक प्रधान पंडा के तौर पर नियुक्त पंडा मनोज कुमार अग्निहोत्री ने बताया कि काफी वर्षो पूर्व उनके पूर्वज चार धाम की यात्रा करते हुए काशीपुर में आये थे क्योंकि उस वक़्त मान्यता थी कि द्रोणासागर सरोवर में स्नान करने के बाद ही चार धाम की यात्रा पूर्ण मानी जाती थी क्योंकि उस वक्त आवागमन के साधन नहीं थे ऐसे में उनके पूर्वज कुछ समय के लिए यही रुक गए थे। इसी दौरान वह यहां पर भ्रमण करने लगे और भ्रमण करते करते हुए जब वह इस स्थान पर पहुंचे तो उन्हें यहां मां की शक्ति का एहसास हुआ। इस स्थान की साफ-सफाई करने के बाद यहां मां की पिंडी रूप में प्राप्ति हुई। इसके बाद उनके पूर्वज यहां मां की सेवा करने लगे जब इसकी खबर नगर वासियों को नगरवासी वहां पहुंचे धीरे धीरे यह खबर कुमाऊं नरेश के पास पहुंची और राजा साहब ने उन्हें वहां बुलाया। पूछना पर उनके पूर्वजों ने बताया कि यहां पिंडी रूप में मां की प्राप्ति हुई है और यह शक्तिपीठ स्थान है। उन्होंने यहां मठ बनवाने की राजा साहब से मांग की। राजा साहब ने उक्त स्थान पर मठ बनवा दिया और उनके पंडा पूर्वज यहां मां की सेवा करने लगे। कालांतर में मुगल काल के समय में नगर वासियों ने पंडा परिवार के साथ राजा साहब के पास पहुंचे और यहां मंदिर बनवाने की राजा साहब से इच्छा व्यक्त की। राजा साहब ने उनकी बात सुनते हुए कुमाऊं नरेश ने मुगल शासक औरंगजेब श्री मंदिर बनवाने की इजाजत लेने की बात कही। कुमाऊं नरेश के द्वारा मुगल शासक औरंगजेब के सामने यह प्रस्ताव रखने पर उसने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। मां के मंदिर बनवाने के कुमाऊ नरेश के द्वारा रखे गए प्रस्ताव को ठुकराए जाने के बाद से ही मुगल शासक औरंगजेब की सबसे प्रिय बहन जहांआरा की तबियत बिगड़ने लगी और वह काफी बीमार हो गई। क्योंकि मुगल शासक औरंगजेब अपनी बहन जहांआरा को बहुत प्यार करता था। जिसके बाद औरंगजेब ने अपनी बहन को स्वस्थ कराने के लिए कई मौलवियों और मजारों पर जाकर स्वास्थ्य लाभ की कामना कर रहे थे लेकिन औरंगजेब की बहन जहांआरा की तबीयत सुधरने का नाम नहीं ले रही थी। एक रात उनकी बहन जहां आ रहा हूं स्वप्न में एक कन्या दिखाई दी और उस कन्या ने औरंगजेब के द्वारा मां का मंदिर बनवाने से मना किए जाने का हवाला देते हुए कहा कि अगर उनका भाई मंदिर बनवा दे तो वह ठीक हो सकती है। औरंगजेब की बहन ने यह बात अपने भाई को बताई और इसके बाद औरंगजेब ने माँ के मंदिर बनवाने का हुक्म कुमाऊं नरेश को दिया लेकिन कुमाऊं नरेश भी स्वाभिमानी थे। उन्होंने मंदिर बनवाने से मना कर दिया। तब बादशाह ने अपने कार्य कर भेज कर इस मंदिर का निर्माण करवाया। इसका प्रमाण मंदिर की गुम्बदनुमा आकृति में साफ दिखता है। अपने दरबार के विद्वानों के कहने पर बादशाह स्वयं इस मंदिर में पहुंचे।
Deepali Sharma
सम्पादक
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