बड़े भाग्य पावे सत्संगा। बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।
जब उस प्रभु की कृपा हो जाती है तब सच्चे सन्त और उनका सत्संग मिलता है
दुनिया के बाजार में काल और माया के जाल में फसें जीवों को कहानियों, प्रसंगों के माध्यम से समझा-चेता कर अपने निज घर सतलोक चलने की इच्छा जगाने वाले इस समय के पूरे सन्त सतगुरु उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने उज्जैन आश्रम पर नव वर्ष कार्यक्रम में 1 जनवरी 2022 को दिए सतसंग में बताया कि एक बार एक जिज्ञासु राजा था। उसके सवाल का जवाब जो दे देता उसको छोड़ देता और जो नहीं देता था उसको जेल में बंद कर देता था। एक भक्त महात्मा जी की सेवा करता। उसको ज्यादा जानकारी थी नहीं। राजा के यहां गया, बढ़िया खाया। उसको क्या पता कि राजा का धन कैसा है, इसकी मेहनत की कमाई का है या प्रजा का है। खाता चला गया लेकिन जब सवाल का जवाब दे नहीं पाया तो जेल में बंद हो गया। महात्मा जी जब साधना से उठे, देखे कहां चला गया। आवाज लगाने पर भी नही आया तब आंख बंद कर के अंदर की दिव्यदृष्टि से देखा तो कहा फंस गया राजा के यहाँ, अब जेल में चक्की पीसना पड़ेगा। तो महात्मा जी गए, कहा पूछो तो राजा ने पूछा-
पहला सवाल सच्चे सन्त के सतसंग क्या लाभ मिलता हैं
बोले देखना चाहते हो या सुनना? राजा बोला देखना क्योंकि प्रत्क्षम किम प्रमाणम। कोई चीज जब सामने आ जाती है तो प्रमाण की जरूरत नहीं पड़ती। महात्मा जी ने कहा पहाड़ी पर चले जाओ वहां एक पेड़ है, चढ़कर के बैठ जाना देखना क्या होता है। राजा गया, देखा कि एक आदमी झाड़ू, दूसरा कालीन बिछा कर चला गया। फिर देखता है कि ऊपर से दिव्य आत्माएं आए और बैठ गई। फिर सिंहासन जैसी चीज कोई ऊपर से उतरी। उसके ऊपर दिव्य पुरुष बैठे दिखाई पड़े। सत्संग सुना करके वह चले गए, वह आत्माएं भी चली गई। फिर एक काला कुरूपी टेढ़े मेढ़े अंग वाला आदमी आया और जहां सतंसग था वहीं पर लोट लगाने लगा। जब उठा, शरीर झाड़ा तो एकदम निर्मल स्वच्छ साफ सुंदर हो गया। राजा उतर कर पूछे आप कौन? बोला भाई मुझको आप पापी कह लो। मैं दिन भर इतने पाप करता हूं, कर्मों का फल तुरंत मिल जाता है। मेरे अंग सारे टेढ़े मेढ़े, कुरुपी चेहरा हो जाता है। जब इस सतसंग स्थान पर लोटने से मैं बिल्कुल ठीक हो जाता हूं। बड़े भाग्य पावे सत्संगा। भाग्य जगता है तब सत्संग मिलता है, कहा मेरे भाग्य जगते ही नहीं हैं, सतसंग में मेरे कर्म आने नहीं देते। राजा ने सोचा सतसंग स्थान का लाभ ऐसा तो तो सत्संग जिसको मिलता होगा उसको कितना लाभ मिलता होगा। लौटकर संतुष्ट दूसरा सवाल पूछा।
राजा का दूसरा सवाल सच्चे सन्त महात्मा महापुरुष के दर्शन का क्या लाभ होता है
महात्मा जी ने कहा चले जाओ बगीचे में। राजा गया देखा दो कौवा बैठे हुए हैं। लौट आया, कहा महाराज वहां कोई नहीं मिला, केवल दो कौवा बैठे थे। बोले फिर जाओ। इस बार राजा को दो हंस दिखे। लौटा बताया तो कहा फिर जाओ। इस बार दो आदमी दिखे। पूछा आप कौन? बोले मेरे पिछले जन्मों के कर्म इतने खराब थे कि कौवा की योनि मिली। जब आपका दर्शन मैंने पहली बार किया, आप संत का दर्शन करके आए तो मैं कौवा से हंस हो गया। दूसरे दर्शन में हंस और तीसरे में आदमी बन गया। आपने मेरे ऊपर बहुत बड़ी दया किया।
आप तो साक्षात सन्त का दर्शन करके आए, आपको कितना बड़ा लाभ राजन मिला होगा। राजा के समझ में आ गया कहा न
अब मोहि भा भरोस हनुमंता।
बिनु हरिकृपा मिलहिं नहिं संता।।
जब प्रभु की दया होती है, संस्कार जगते हैं तब हमारे गुरु महाराज जैसे संत का दर्शन मिलता था। इनके इस दुनिया से जाने के बाद भी उनके दर्शन अंतर में करने की युक्ति नामदान बताऊंगा। इस उपाय से जितने भी सन्त है, सब ऊपर मिलते हैं।
जो इच्छा कीन्ही मनमाही।
गुरु प्रताप कर दुर्लभ नाही।
जब गुरु का प्रताप, दया हो जाती है तब ऊपर जिस चीज की इच्छा करते हैं वह चीज हाजिर नाजिर रहती है, मिल जाती हैं। अब राजा ने तीसरा सवाल दीनता के साथ पूछा-
राजा का तीसरा और अंतिम सवाल सेवा का क्या लाभ होता है
महात्मा जी ने कहा चले जाओ नदी किनारे। वहां तुमको कुछ दिखाई पड़ेगा, कोई मिलेगा। गया तो देखा किनारे एक जवान आदमी हाल ही में मरा पड़ा था। देखा जंगल के बहुत जानवर आए, उस शरीर को सूंघ कर चले गए, कोई मांस खाया ही नहीं। देखा एक बहुत भूखा सा सियार आया, पूरे शरीर को सूंघा और उंगली पर जब आया तो थोड़ी सी उंगली खा लिया। राजा के समझ में नहीं आया कि कोमल स्वच्छ मांस क्यों नहीं खाया, केवल उंगली क्यों? दया से बात करने की शक्ति मिली। पूछा तब सियार ने बताया की जब यह जिंदा था तब अपने तन मन धन से कोई सेवा नहीं की। इसलिए इसके सारे अंग अपवित्र थे। यह शरीर के लिए ही सब कुछ करता रहा। इसके कोई भी अंग सेवा में नहीं लगे। एक जगह भंडारा था। कुछ भूखे साधु लोग जा रहे थे। यह बैठा हुआ था अपने दरवाजे पर। साधुओं ने पूछा भंडारा किधर है तो केवल उंगली से इशारा किया तो वह उंगली पवित्र थी तो वही मैंने खाया। राजा के समझ में आ गया। माफी मांगी और सबको जेल से छोड़ दिया। तो कहानी पर अमल भी करना चाहिए और पूरे सन्त को खोज कर लाभ भी लेना चाहिए।
Deepali Sharma
सम्पादक
खबर प्रवाह
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