April 29, 2024

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तीन दिवसीय 73 वें वार्षिक निरंकारी वर्चुअल संत समागम का कवि दरबार के साथ हुआ सफलतापूर्वक समापन।

“जीवन में स्थिरता, सहजता और सरलता लाने के लिए परमात्मा के साथ नाता जोड़े” यह विचार सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने मानवता को प्रेरित करते हुए तीन दिवसीय 73वें वर्चुअल वार्षिक निरंकारी संत समागम के समापन दिवस पर 7 दिसंबर 2020 को अपने प्रवचनों में व्यक्त किए।इस समागम का संत निरंकारी मिशन की वेबसाइट एवं संस्कार टीवी चैनल पर विश्व में फैले लाखों श्रद्धालु भक्तों द्वारा आनंद प्राप्त किया गया
सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने कहा कि जीवन के हर पहलू में स्थिरता की आवश्यकता है! परमात्मा स्थिर, शाश्वत एवं एक रस है। जब हम अपना मन इस के साथ जोड़ देते हैं तो, मन में भी ठहराव आ जाता है।जिससे हमारी विवेकपूर्ण निर्णय लेने की क्षमता बढ़ जाती है, और जीवन के हर उतार-चढ़ाव का सामना हम उचित तरीके से कर पाते हैं।


इस बात को और अधिक स्पष्ट करते हुए सतगुरु माता जी ने कहा कि “जैसे एक वृक्ष में फल लगने से पहले फूल आते हैं और फल उतारने का समय भी आ जाता है; उसके पश्चात पतझड़ का मौसम आता है जिसमें पत्ते तक निकल जाते हैं और एक हरा-भरा वृक्ष जिसकी शाखाएं हरी-भरी लहलाती थी, अब वह सूखी लकड़ियों की भांति प्रतीत होता है।अस्थिरता और मौसम में परिवर्तन के बावजूद वह वृक्ष अपने स्थान पर खड़ा रहता है। क्योंकि वह अपनी जड़ों के साथ मजबूती से जुड़ा होता है। इसी प्रकार हमारी जड़ें हमारा आधार हमारी नींव इस परमात्मा के साथ जुड़ी रहे और हम इसके साथ इक मिक हो जाएं, तब किसी भी परिस्थिति के आने से हम विचलित नहीं होते
इसके पूर्व समागम के पहले दिन सदगुरु माताजी ने मानवता के नाम संदेश प्रेषित कर समागम का विधिवत उद्घाटन किया। जिसमें मानव को भौतिकता के ऊपर उठकर मानवीय मूल्यों को अपनाने का आह्वान किया


पहले दिन के मुख्य प्रवचन में सतगुरु माता जी ने कहा कि संसार में कोई भी वस्तु स्थिर नहीं है। हर चीज में निरंतर परिवर्तन होता रहता है, कोरोना कॉल ने इस बात का अत्याधिक एहसास कराया कि हर वस्तु चाहे कितनी भी बहुमूल्य हो, उसका स्वरूप स्थाई नहीं रहता। ऐसी अस्थिर वस्तुओं के साथ जब मन का जुड़ाव हो जाता है, तब मन आसक्त हो जाता है। जिसका प्रभाव भावनात्मक, मानसिक एवं शारीरिक रूप में होने लगता है। ऐसी स्थिति में हमारे मन को जो ठीक रख सकती है, वह है स्थिरता। फिर जब हम स्थिर हो जाते हैं, तब शाश्वत आनंद के साथ प्रबलता से मानवीयता की ओर बढ़ सकते हैं।
स्थिरता का भाव समझाते हुए सतगुरु माता जी ने कहा कि संसार परिवर्तनशील है। इसमें तो उथल पुथल होती ही रहती है। परिस्थितियां कभी अनुकूल तो कभी प्रतिकूल होती हैं। कई बार हमारी अपनी सोच हमें कहीं एक दिशा में ले जाती है, तो कहीं दूसरी ओर। इससे कभी हम बहुत खुश तो कभी बहुत निराश हो जाते हैं,कि एकदम तनावग्रस्त हो जाते हैं। जीवन के उतार-चढ़ाव में संतुलन बनाकर चलने से हमें स्थिरता प्राप्त हो सकती है और यह केवल तभी संभव है। यदि हम आध्यात्मिक जागृति प्राप्त कर चुके संतों का संग करते हैं।


सेवा दल रैली
समागम के दूसरे दिन का आरंभ एक रंगारंग सेवा दल रैली से हुआ। जिसमें देश विदेश के सेवादल भाई-बहनों द्वारा प्रार्थना, शारीरिक व्यायाम, खेल कूद और विभिन्न भाषाओं के माध्यम द्वारा मिशन की मूल शिक्षाओं को दर्शाया गया।
सेवा में समर्पित रहने वाले सभी संतो को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हुए सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कहा कि “कोरोना के कारण जीवन में कितनी सारी परेशानियां एवं समस्याओं के आने के बावजूद जिनका भी मन स्थिर था एवं जिन्होंने सेवा भाव से अपने मन को जोड़े रखा।उनके जीवन में सहजता और स्थिरता कायम रही।” इस वर्ष की विपरीत परिस्थितियों में बहुत से लोगों की जीवनशैली भी बदल गई। लेकिन सेवादारों के द्वारा इस परिस्थिति में भी सेवा का वही जज्बा कायम रहा।
इसी सेवा भाव को आगे बढ़ाते हुए कोविड-19 के दौरान सरकार द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों को अपनाते हुए मानवता के कल्याण के लिए सेवा में मिशन ने अपना भरपूर योगदान दिया।जहां भी जरूरत महसूस हुई चाहे वह मोहल्ला, बस्तियां, गांव, शहर हो: वहां जा कर राशन एवं जरूरतमंद वस्तुओं का वितरण किया गया। मिशन के कई भवन कोरोना सेंटर के रूप में भी उपयोग किए गए! जब लॉकडाउन में कुछ शिथिलता आई तो कोरोना के कारण हुई रक्त की कमी को पूरा करने के लिए मिशन की ओर से समय-समय पर रक्तदान शिविर लगाए गए
सदगुरु माताजी ने कहा कि हमने सेवा केवल स्वयं के परिवार की नहीं, अपितु पूरे संसार के लिए करनी है। सेवादार- मानवता है धर्म हमारा हम केवल इंसान हैं के भाव को अपनाते हैं और वह सेवा को अपना सौभाग्य मानते हुए उसे विनम्रता पूर्वक करते हैं! और उसे किसी पर एहसान नहीं समझते।


दूसरे दिन के सत्संग समारोह को संबोधित करते हुए सतगुरु माता जी ने कहा कि जब हमारा मन परमात्मा की पहचान कर, इसका आधार लेता है, तब हम परमात्मा के ही अंश बन जाते हैं और जीवन में स्थिरता आ जाती है।यदि हम यह सोचें कि बाहर का वातावरण हमारे अनुकूल हो जाने से जीवन में स्थिरता आएगी तो यह संभव नहीं। स्थिरता तो अंतर्मन की अवस्था पर निर्भर है। अंतर्मन को परमात्मा से जोड़कर स्थिरता प्राप्त की जा सकती है! फिर किसी भी प्रकार की परिस्थिति हमारे मन का संतुलन नहीं बिगाड़ सकती, क्योंकि हम अंदर से मजबूत हैं, हमारी जड़ें मजबूत हैं। ऐसे में बाहरी वातावरण हमारे मन को विचलित नहीं कर सकता।
सतगुरु माता जी ने उदाहरण देते हुए कहा कि एक सागर का स्वरूप इतना गहरा बड़ा और विशाल होता है, उसके बावजूद भी उसकी गहराई में कोई हलचल महसूस नहीं होती। लेकिन जब हम उसके किनारों की और आते हैं तो उसकी गहराई कम हो रही होती है, उसमें लहरें भी आती हैं, उछाल भी आते हैं, और शोर भी सुनाई देने लगता है। इसी भांति मानव जो सहनशील होता है विषम परिस्थिति में प्रभु निरंकार के साथ जुड़कर उसकी स्थिरता कायम रहती है। इसके विपरीत जो इंसान छोटी-छोटी बातों का असर ग्रहण करता है, उसके व्यवहार से ही पता चल जाता है कि वह स्थिर नहीं है।
कवि दरबार
समागम के समापन दिवस पर 7 दिसंबर की संध्या को एक बहु भाषा कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें विश्व भर के 21 कवियों ने स्थिर से नाता जोड़ के मन का, जीवन को हम सहज बनाएं! इस शीर्षक पर विभिन्न बहुभाषी कविताओं का सभी ने आनंद लिया!जिसमें हिंदी, अंग्रेजी,पंजाबी,मराठी, उर्दू एवं मुलतानी इत्यादि भाषाओं का समावेश देखने को मिला। अपनी रचनाओं के माध्यम से मानव जीवन में स्थिरता के महत्व को समझाते हुए उसके हर एक पहलू को उजागर करने का कवियों द्वारा प्रयास किया गया!
समागम के तीनों दिन भारतवर्ष के अतिरिक्त दूर देशों से ब्रह्मज्ञानी वक्ताओं ने विभिन्न भाषाओं का सहारा लेते हुए जहां अपने प्रेरणादायी विचार प्रस्तुत किए, वहीं संपूर्ण अवतार वाणी तथा संपूर्ण हरदेव वाणी के पावन शब्द, पुरातन संतो के भजन तथा मिशन के गीत कारों की प्रेरणादायी मधुर रचनाओं ने भक्तों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अपने घरों में बैठकर वर्चुअल रूप में लाखों श्रद्धालुओं ने इस समागम का आनंद प्राप्त किया और यह प्रार्थनाएं भी की कि अगला समागम प्रत्यक्ष रूप में सदैव की भांति मैदानों में आयोजित हो।